शेयर मार्केट में उपयोग किए जाने वाली शब्दावली share market related words in hindi

जीवन पाटील
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शेयर मार्केट में उपयोग किए जाने वाली शब्दावली, share market related words in hindi


दोस्तो अगर आप शेयर मार्केट में begginers है तो शेयर मार्केट में उपयोग किए जाने वाले शब्द आपको जान लेना अति आवश्यक है। क्यों की जब आप ऑनलाइन या ऑफलाइन knowledge  लेना चाहेंगे तो आपको शेयर मार्केट से रिलेटेड शब्दों की meaning मालूम होनी चाहिए। इसलिए खासकर ये पोस्ट नए यूजर्स के लिए helpfull साबित होगी।

इन शब्दों की मीनिंग जानने के बाद आपको शेयर बाजार की थोड़ी बहुत जानकारी हो जायेगी। ऐसे words इस मार्केट में उपयोग किए जाते है जो शायद आपने कभी सुने नही होंगे। इसीलिए मुझे आशा है की इससे आपकी नॉलेज बढ़ जाएगी।

शेयर मार्केट में उपयोग किए जाने वाली शब्दावली


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इस आर्टिकल में मैने शेयर मार्केट जुड़े हुए हर words को detail में explain किया है, ताकि आपको कोई confusion हो। उन शब्दों को आसान भाषा में समझने की कोशिश की है। मुझे आशा है की इस पोस्ट की मदद से शेयर मार्केट में use होनेवाले words  से आपको उन्हे समझने में मदद मिलेगी। चलिए जानते है की शेयर मार्केट में उपयोग किए जानेवाले शब्द कौनसे है।


शेयर बाजार से जुड़े words को जानना क्यू जरूरी है?


अगर किसी ट्रेडर को शेयर मार्केट का ज्ञान बढ़ाना है। उसमे एक्सपर्ट बनना है तो आपको शेयर मार्केट से जुड़े शब्दो की meaning को जानना बहुत आवश्यक है।


जब आपको उनका अर्थ पता नहीं होगा तो वह सब्जेक्ट आपको बोरिंग सा लगने लगेगा। हो सकता है की आप उसमे दिलचस्पी ही ना ले। इसलिए स्टॉक मार्केट में begginers को word meaning को जानना चाहिए।

शेयर मार्केट में उपयोग किए जानेवाले शब्द कौनसे है?




# शेयर ( share) :

मान लिजिए, कोई एक कंपनी है उसे शेयर बाजार में कंपनी को लाना है तो वह कंपनी अपने कुल संपत्ति को लाखो या करोड़ो समान छोटे हिस्सो मे बाट देती है। उनमें से किसी एक हिस्से को भाग या शेयर भी कहते है। उसे stock भी कहते है और इक्विटी भी कहते है। उन्ही शेयर्स की खरीदारी और बिकवाली जिस ऑनलाइन प्लेटफार्म के जरिए होती है उसे शेयर मार्केट कहते है।


# बुल या बुलिश मार्केट ( bulish market) : 

अगर कोई कहता है की आज मार्केट ऊपर जा रही है, या फिर शेयर का भाव बढ़ रहा है तो उसे bull या bullish market कहा जाता है। अगर किसी निश्चित समयसीमा में मार्केट के शेयर का भाव बढ़ रहा है तो उसे मार्केट bullish है ऐसा कहा जाता है। इसे दूसरे शब्दो में बाजार में तेजी है ऐसा भी कहा जाता है।


# बीयर या बेयरिश मार्केट (बेयरिश मार्केट) :

अगर  मार्केट में शेयर्स का भाव गिर रहा है या फिर मार्केट का moovment नीचे जा रहा हो तो उसे बेयरिश मार्केट कहा जाता है। अगर किसी समयसीमा में मार्केट का प्राइस गिरता जा रहा हो तो उसे आज मार्केट बेयरिश है ऐसा कहा जाता है।

# ट्रेंड (trend) : 

बाजार किस दिशा में जा रहा है और कितनी तेजी से जा रहा है उसे ट्रेंड के नाम से जानते है। यह आपको एक उदाहरण देकर समझता हूं।  मार्केट में तेजी से गिरावट हो रही है तो गिरावट का ट्रेंड चल रहा है ऐसा बोला जाता है। वही पर अगर बाजार में तेजी से ऊपर की तरफ moovment कर रहा है तो  बाजार में तेजी का ट्रेड चल रहा है ऐसा कह सकते है। इस शब्दावली को इंग्लिश में down trend और up trend भी कहा करते है।

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# Sideway market: 

मान लीजिये, मार्केट का प्राइस या किसी शेयर का प्राइस ज्यादा बढ़ नही रहा हो और ज्यादा गिर भी नही रहा हो तो उसे sideway market कहा जाता है। ऐसी स्थिति में sellers और buyers दोनो ज्यादा active नहीं होते। क्यों की sideway मार्केट में उन्हें मुनाफा कमाने के chances नही होते। ज्यादातर लोग ऐसी स्थिति में ट्रेड करना पसंद नहीं करते।


# प्रॉफिट (profit):


ये शब्द शायद आपने सुना होगा। ये ऐसा शब्द है जो हर ट्रेडर्स को पसंद होता है। लोग शेयर मार्केट में पैसा इसी लिए लगाते है की उन्हे मुनाफा हो।

Profit का मतलब होता है मुनाफा। अगर आपने कोई शेयर buy किया और उसकी कीमत बढ़ जाने पर उसे ज्यादा पैसे प्राप्त होंगे।इसे लाभ होना या आ होना भी कहा जाता है।


# लॉस (loss) :

अगर किसी ने कोई  शेयर खरीदा और उसे उसमे नुकसान हुआ तो उसे लॉस होना कहा जाता है। कई लोग शेयर मार्केट में पैसे का नुकसान हो जाता है इसीलिए उससे दूर रहते है। शेयर बाजार में जिस तरह प्रॉफिट होता है उसी तरह लॉस भी होता है।


# ट्रेडर ( Treder ) : 

जो लोग किसी निश्चित समयसीमा के दरमियान शेयर्स की खरीदारी या बिकवाली करते है उन्हे ट्रेडर कहा जाता है। वह किसी व्यापारी की तहत buy और sell करके प्रॉफिट कमाते है इसलिए उन्हे व्यापारी के नाम से भी जाना जाता है।


 # कैपिटल (Capital) :

किसी भी कंपनी के पास अपना कारोबार चलाने या बढ़ाने के लिए कितना वेल्थ है, उसे उस कंपनी का भांडवल (Capital) कहा जाता है। कंपनी के पास कितना कैपिटल है उसके आधार पर उनके तीन प्रकार हो जाते है। जैसे स्मॉल कैप, मिड कैप, लार्ज कैप कंपनी। 


# मार्केट कैपिटलाइजेशन (market capitalisation)

मार्केट कैपिटलाइजेशन को शॉर्ट में मार्केट कैप के नाम से भी जाना जाता है। बाजार में कौनसी कंपनी छोटी है और कौनसी कंपनी बड़ी है इसे मार्केट कैप से जाना जाता है। हिंदी में इस बाजार पूंजीकरण भी कहते है। सामान्यतया शेयर मार्केट में इन्वेस्टमेंट करनेवाले लोगों में ये एक महत्वपूर्ण डेटा होता है। जिससे शेयर का आकलन करने  में मदद मिलती है।


खुले बाजार में शेयर्स की खरीदारी और बिकवाली होती है जिससे उन शेयर केशव काम या ज्यादा होते रहते है। इस वजह से मार्केट कैपिटल भी बढ़ता और घटता रहता है।


# स्मॉल कैप (small cap) :

जिस कंपनी का market capitalisation 5000 करोड़ से कम है उस कंपनियों को स्मॉल कैप कंपनी कहते है। उन कंपनी के शेयर्स स्मॉल कैप कंपनी के शेयर होते है। स्मॉल कैप कंपनीज के शेयर्स में large cap और mid cap के मुकाबले रिस्क ज्यादा होता है। 


# मिड कैप (mid cap) :

जिस कंपनी का market capitalisation 5000 करोड़ से ज्यादा और 20000 करोड़ से कम होता है, इन कंपनियों को मिड कैप कंपनी कहते है। मिड कैप कंपनी के शेयर्स में स्मॉल कैप से कम रिस्क होता है और लार्ज कैप से ज्यादा रिस्क होता है।


# लार्ज कैप (large cap) :

जिस कंपनी के market capitalisation 20,000 करोड़ से ज्यादा है इस कंपनी को लार्ज कैप कंपनी कहते है। स्मॉल कैप और मिड कैप के शेयर्स के मुकाबले लार्ज कैप कंपनी के शेयर में कम रिस्क होता है। ज्यादातर लोग लॉन्ग टर्म investment के लिए लार्ज कैप शेयर्स को चुनते है।


# शेयर की फेस वैल्यू (face value) : 

जब कोई कंपनी शेयर मार्केट में लिस्टेड होती है तो उस समय उनके शेयर की कीमत  कंपनी का प्रमोटर तय करता है। उसे इस कंपनी की फेस वैल्यू कहते है। यानी कंपनी की तय में गई कीमत की फेस वैल्यू या फार वैल्यू भी कह सकते है। कंपनी के corporate फैसलों के लिए इसे ही ध्यान में लिया जाता है। जैसे कंपनी के शेयर खरीदने वाले निवेशकों के लिए डिविडेंड देना, बोनस देना या शेयर्स को split करना। ऐसे स्थितियों में face value को ही आधारभूत माना जाता है।


# इंट्रिंसिक वैल्यू (Intrinsic value) :

किसी भी शेयर की intrinsic value का मतलब उसकी वास्तविक कीमत से है। इसे आंतरिक मूल्य भी कहा जाता है। इसे फेयर वैल्यू, एक्चुअल वैल्यू, या रियल वैल्यू से भी जाना जाता है। 


निवेशकों को शेयर खरीदने से पहले उसकी Intrinsic value को देखकर खरीदना फायदेमंद होता है। क्यों की तभी आपको भविष्य में ज्यादा रिटर्न मिलने की संभावना रहती है।

# इंट्रा डे पोजिशन (Intraday position)

शेयर बाजार में Intraday को डे ट्रेडिंग भी कहा जाता है। इसमें जिस दिन शेयर की खरीदारी की जाती है उसी दिन उसे बेचना भी पड़ता है। यानी एक ही दिन के अंदर आपका सौदा पूरा किया जाता है। चाहे आपको लॉस हो या प्रॉफिट, मार्केट बंद होने से पहले आपको ट्रेड पूरा करना होता है। इसीलिए इसे intraday के नामसे जाना जाता है।


# फ्यूचर और ऑप्शन (future and option)




# लॉन्ग पोजीशन (Long position) :

अगर कोई निवेशक किसी शेयर को ये समझ के खरीद रहा है, की उस शेयर की कीमत बढ़ने वाली है तो उस पोजीशन को लॉन्ग पोजीशन कहा जा सकता है। अपट्रेंड का ट्रेड की पोजिशन को लॉन्ग होना या लॉन्ग पोजीशन कह सकते है। 


अगर आपने टाटा मोटर्स के शेयर में कीमत बढ़ेगी, ऐसा सोचकर कोई ट्रेड लिया है तो ये लॉन्ग पोजीशन होगी।मान लीजिए आपने कोई लॉन्ग पोजीशन पर शेयर खरीदा है तो ये समझा जायेगा की इस समय आपका मार्केट की तरह देखने का नजरिया bulish है।


# शॉर्ट पोजीशन (short position) :

कोई ट्रेडर अगर ये सोचकर ट्रेड लेता है की आज मार्केट गिरने वाली है तो  वह जो ट्रेड लेता है उसे शॉर्ट ट्रेड कहते है। शॉर्ट ट्रेड हमेशा intraday tred या option tred में होता है। डिलीवरी या एक दिन से ज्यादा समय तक शेयर्स को होल्ड रखने के लिए शॉर्ट पोजिशन नही ली जा सकती।


शॉर्ट पोजिशन में पहले जितने शेयर का सौदा करना है उसे sell किया जाता है। और बाद में उसे buy किया जाता है। इसमें आपको प्रॉफिट हो या चाहे लॉस हो आपको समयसीमा के अंदर उस सौदे को पूरा करना होता है। जितने शेयर को सेल किया है उतने शेयर बाद में खरीदना पड़ता है। अगर आप समय सीमा के अंदर ऐसा नहीं करते तो आपका पोजिशन स्क्वेयर ऑफ किया जाता है जिसके लिए ब्रोकर शुल्क लेता है।


ये सुविधा intraday और option treding के लिए दी जाती है। शॉर्ट पोजिशन तब की जाती है जब शेयर का प्राइस गिरने का अनुमान हो। इसमें पहले sell फिर उसके बाद buy किया जाता है। शेयर का प्राइस गिरने से आपको profit होता है, ये इसकी खासियत है।


# NSE (national stock exchange) :


जब किसी कंपनी को अपने शेयर्स को पब्लिकली बनाना होता है। तो उस कंपनी को स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड होना पड़ता है। लिस्टेड होने के बाद लोग उसे एक्सचेंज से खरीदते और बेचते है। इंडिया में दो exchange है जिसमे एक नेशनल स्टॉक एक्सचेंज या NSE के नाम से जाना जाता है।


# बीएसई (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) : 


NSE की तरह ही BSE भी  स्टॉक एक्सचेंज है जिसके माध्यम से लोग शेयर को खरीदते और बेचते है। BSE को bombay stock exchange  भी कहते है।  


# निफ्टी फिफ्टी (nifty fifty) :

अक्सर हम न्यूज में सुनते होंगे की आज निफ्टी 200 प्वाइंट बढ़ गया। आज निफ्टी 350 प्वाइंट गिर गया। आज सोचते होंगे की ये निफ्टी क्या है। दरअसल निफ्टी ये एक indices है।  NSE में लिस्टेड टॉप की 50 कंपनीज को मिलकर nifty बना है। ये ऐसी कंपनी होती जो अपने सेक्टर में बेस्ट होती है। उन सभी कंपनी का डेटा मिलाकर निफ्टी बना हुआ है। इसलिए इसे निफ्टी फिफ्टी कहते है।


लोग शेयर मार्केट में निवेश करने से पहले निफ्टी को देखते है फिर निर्णय करते है की वह शेयर्स को खरीदे या नहीं। क्यों की बाजार का रुझान बताने का काम करता है। मार्केट का trend इससे पता चलता है।


# सेंसेक्स ( sensex) :

BSE में लिस्टेड टॉप की 30 कंपनीज को मिलकर सेंसेक्स बना हुआ है। ये भी निफ्टी की तरह index है जो बाजार का trend बताने  का काम करता है। सेंसेक्स भी बाजार की गति के अनुसार ऊपर नीचे होता रहता है।


# स्क्वेयर ऑफ ( Squere off ) :

आपने जो पोजीशन शेयर बाजार में ले रखी है us position को खत्म करने को Squere off  कहते हैं।मान लिजिए अगर आपने शेयर खरीदा है तो उसे बेचना Squere off  कहलाता है। Intraday में अगर आप खुद  अपने सौदे को पूरा नहीं करते तो ब्रोकर आपकी पोजिशन को मार्केट बंद होने से पहले स्क्वेयर ऑफ कर देता है। जिसके लिए आपका ब्रोकर कुछ चार्जेस लेता है।


 # 52 weak high : 52 weak low :

किसी भी शेयर का price पिछले 52 वीक में जिस high level तक पहुंचा है उसे उस शेयर का 52 वीक हाई बोलते है। यहाई आपको एक उदाहरण देकर बताता हूं। Itc का शेयर आज 362 पर चल रहा है। लेकिन पिछले एक साल के भीतर वह एक बार 412 तक पहुंचा था तो 412 का प्राइस itc का 52 weak high  होगा।


जैसे की मैने आपको ऊपर बताया है ठीक वैसे ही किसी शेयर का प्राइस पिछले 52 weak के भीतर जिस lowest price तक पहुंचा था उसे उस शेयर का 52 weak low समझा जायेगा।


# All time high / low :


जबसे कंपनी शेयर मार्केट में लिस्टेड हुई है।  उस टाइम से आज तक वह share ने जो सबसे ज्यादा प्राइस पर गया है, उसे उस शेयर all time high  समझते है। All time low का भी इसके बिलकुल विपरित होता है। 


# फंडामेंटल एनालिसिस (Fandamental analysis):

जब किसी को शेयर को buy करना होता है तो  इन्वेस्टर को उस कंपनी के बारे में कई सारी बातें जाननी होती है। जिससे उस कंपनी के आंतरिक मूल्य की जानकारी प्राप्त की जाती है। लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट करने के लिए ये सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर होता है। जिससे कोई भी निवेशक ज्यादा से ज्यादा रिटर्न प्राप्त कर सके।


फंडामेंटल में आपको company का financial statements के अलावा कंपनी की भविष्य में क्या प्लानिंग है, कंपनी के profit,  company का management  इत्यादि की जानकारी प्राप्त करना होता है। लॉन्ग टर्म में investment के लिए फंडामेंटल को चेक करना सबसे जरूरी होता है।


# टेक्निकल  एनालिसिस ( technicle analysis) :

जब भी कोई ट्रेडर को किसी समयसीमा के लिए ट्रेड लेना होता है तो वह टेक्निकल एनालिसिस करके खरे खरीदता है। इससे उसे  किसी निश्चित समयसिमा में स्टॉक का प्राइस किस तरफ moovment करेगा ये पता लगाया जाता है।


ठीक वैसे ही जैसे कोई डॉक्टर x ray को देखकर मरीज की बीमारी का पता लगा लेते है। टेक्निकल एनालिसिस  में अलग अलग time frame में चार्ट को  सकते है। उसे मैनुअली Setting भी किया जा सकता है।


निष्कर्ष : शेयर मार्केट में उपयोग किए जाने वाली शब्दावली

लगभग हर बेगिनर को  शेयर मार्केट में उपयोग किए जाने वाली शब्दावली को मालूम नही होता जिससे उन्हे शेयर मार्केट से जुड़ी जानकारी पाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसीलिए मुझे विश्वास है की ये पोस्ट आपके लिए  usefull साबित होगी। दोस्तो अगर ये पोस्ट आपको दोस्तो के लिए helpfull हो सकती है तो ये पोस्ट social media पर शेयर करना ना भूले। अगर आपको इस article से रिलेटेड कोई quiry है तो कमेंट जरुर करे। Thanks for all.


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